अभी हाल ही में हमारे केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने जीडीपी ग्रोथ रेट निगेटिव (-) रहने की संभावना जताई हैं इतिहास के पन्नों में देखा जाए तो यह वाकया 41 साल पहले भी घटा था । चलिए जानते है -
वैसे यह बात कोई नई नहीं, आजाद भारत के इतिहास में यह घटना कई बार घट चुकी है लगभग चार बार। कई विश्व एजेंसियों ने इसकी घोषणा पहले ही कर दी थी लेकिन आरबीआई गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास जी ने इसकी घोषणा 22 मई को की और कहा कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की जीडीपी निगेटिव रह सकती हैं। वैसे यह पहला मौका है जब आरबीआई ने वित्त वर्ष के दो महीने बीत जाने के बावजूद अभी तक वर्ष 2020-21 के लिए "सालाना विकास दर" का लक्ष्य तय नहीं किया है।
वर्ष निगेटिव ग्रोथ रेट
• 1965 -2.64%
• 1966 -0.06%
• 1972 -0.55%
• 1979 -5.238%
वर्ष 1979 में ऐसा क्या हुआ था चलिए जानते है -:
1. इस्लामिक क्रांति ( ईरान) की वजह से तेल की कीमत 12 महीने तक दोगुने स्तर पर बनी रही ।
2. सूखा की वजह से कृषि को काफी नुकसान हुआ।
3. एक साल पहले अर्थात् 1978 में सरकार ने डिमोनेटाइजेशन किया और एक हजार, पांच हजार तथा दस हजार के नोटों को वापस ले लिया था।
निगेटिव ग्रोथ रेट के प्रभाव -:
• बाज़ार में मांग कम हो जाएगी।
• मांग कम होने से कई उद्योग ठप हो जायेंगे
• फिर बेरोजगारी बढ़ेंगी।
• बेरोजगारी बढ़ी तो गरीबी भी बढ़ेगी।
सरकार इस स्थिति से उबारने के लिए काफी प्रयास कर रही है जैसे -:
1. रेपो रेट में कटौती।
2. पैकेज
3. ई एम आई (मरेटरियम) में छूट।
4. लोन मेला आदि।
रेपो रेट
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